सत्तासीन षड्यंत्र का शिकार है छात्रसंघ चुनाव



भारत के बड़े परिवार, ऊंचे खानदान, गोरे रंग, विदेशी अध्ययन कर आये, राजनीतिक रसुखात रखने वाले या बड़े राजनीतिज्ञों के बेटों के सत्तासीन षड्यंत्र का शिकार बना है छात्रसंघ चुनाव। प्रश्न यह है कि भारत में महाविद्यालय, विश्वविद्यालय से सजग, सचेत, निर्भीक अध्ययनशील युवक जब राजनीति में आते हैं तो बड़े राजनैतिक परिवारों की संतति के लिए राजनीति में स्थापित होने की सहजता खत्म होती है। इसलिए जिन राज्यों में छात्रसंघ में नेतृत्व कर आये लोग मुख्यमंत्री बने बैठे हैं वहां पर भी छात्रसंघ चुनाव प्रतिबंधित है।
छात्रों के स्वाभाविक तेवरों को ठंडा करके अपने कैरियर का ध्यान दिला करके शातिर तरीके से देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी की भावना को दूर करने का प्रयास हो रहा है। यह साजिश कौन लोग कर रहे हैं? बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के समर्थक कारपोरेट जगत के इशारे पर चलने वाले लोग सत्ता समर्थक बुद्धिजीवी , ताकि जो भी चल रहा है इसके प्रति लापरवाही बरती जाए और देश की भयानक समस्याओं के प्रति छात्रा उदासीन हो जाए। क्योंकि अगर छात्रा जागरूक हुआ तो प्रश्न पूछेगा। जिससे बड़ी कम्पनियों को व्यापार में बाधा होगी। इस कारण वह इस बाधा को खत्म करना चाहते हैं।
चुनाव आयोग देश में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव तो सफलतापूर्वक सम्पन्न करवा सकता है। किन्तु छात्रों के चुनाव के विषय में वह भी नकारात्मक सोच प्रकट करता है। जहां चुनाव भी हो रहे हैं वहां प्रत्याशियों पर नितांत अव्यवहारिक नियम थोपे जा रहे हैं जिनके चलते चुनाव मखौल बन कर रह गए हैं।
आज देश में विश्वविद्यालय व महाविद्यालय प्रशायन का लिंगदोह कमेटी की सिफारिश के नाम पर लोकतांत्रिक मूल्यों को ताक पर रखकर मनमानी करना दुर्भाग्यजनक है। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में विगत तीन वर्षों से लगातार विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा मनमानी कर छात्रसंघ और छात्रहितों पर कुठाराघात हो रहा है। उनको जब लगता है तब वह अपनी आवश्यकतानुसार लिंगदोह की सिफारिश को गलत तरीके से थोपते हैं। उसी के तहत उन्होंनें इस वर्ष दिल्ली की छात्रसंघ के अधिकांश प्रत्याशियों के नामांकन रद्द कर अपनी तानाशाही भूमिका को दोहराया है। तो वही उत्तर प्रदेश में मायावती की तानाशाही के कारण चुनाव नहीं कराना दुर्भाग्यपूर्ण है।
देश में छात्रासंघ चुनाव में मेरिट के आधार पर मनोनयन अनुशासन के नाम पर गलत तरीके से लिंगदोह की सिपफारिशों का दुरुपयोग तो वही नौकरशाही के तानाशाही पूर्ण रवैये एवं निजी प्रबंधकों के दबाव में योजनाब( तरीके से छात्रासंघ पर आक्रमण कर युवा व छात्र आन्दोलन को समाप्त कर देने का षड्यंत्र है। जो देश के लोकतंत्र को गंभीर खतरा है। लिंगदोह समिति ने अपनी सिफारिशों को लागू कर छात्रसंघ का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है। लेकिन विडम्बना देखिए इसी समिति की सिफारिशों के चलते यहां छात्रासंघ चुनाव बाधित है।
देश में अशिक्षित युवक संसद व लोकसभा के लिए प्रतिनिधि चुन सकता है। लेकिन अपने कालेज में छात्रा प्रतिनिधि नहीं चुन सकता। छात्रासंघ चुनाव के विरोध में सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से आरोप लगाया जाता है कि इसमें धनबल का बोलबाला हो गया है और इसका अपराधिकरण हो गया है। बिहार में लगभग 25 वर्षों से चुनाव होते हैं, वहां की शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त हो गई। प्रश्न यह है कि क्या लोकसभा, विधानसभा, निकाय, पंच, प्रधान के चुनावों में हिंसा नहीं होती। तो छात्रसंघ चुनाव पर ही प्रतिबंध क्यों है? रोग को दूर करने के बजाय रोगी को मारना यह न्यायसंगत नहीं है।
इसी कारण आज परिसरों में सन्नाटा पसरा है, सवाल नहीं पूछे जा रहे हैं। हर व्यवस्था को ऐसे खामोश परिसर द्वारा आते है जहां प्रेफशर पार्टियां हो, फैशन शो हो, मेले-ढेले लगे, पफेयरवेल पार्टियां हो उत्सव और रंगारंग कार्यक्रम हो, पफूहड़ गानों पर नौजनवान थिरके, पर उन्हें सवाल पूछते, बहस करते नौजवान नहीं चाहिए, राजनीति और व्यवस्था उन्हें ऐसा ही रखना चाहती है। छात्रसंघों ने तो सदैव भ्रष्ट राजसत्ता को चुनौती देने का काम किया है। किन्तु आज शासनाधीशों की आंखों में गड़ने लगे हैं। उन्हें तो प्रधानाचार्य व कुलपतियों के दफ्तरों के गमलों में लगे बोनजाई की तरह दिखने और रहने वाले छात्रों की जमात चाहिए।
विश्वविद्यालयों के परिसर जीवंत बने, स्पंदन युक्त हो, इसके लिए सकारात्मक वातावरण और छात्रासंघ में आम छात्रा के विश्वास की जरूरत है।
मुझे ध्यान है जब राजस्थान में तीन विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव भारी मतों से जीतने के बाद अभाविप ने राजस्थान के छात्रसंघ चुनाव में लागू करने के लिए सरकार पर दबाव डाला। मगर इस तरह के अच्छे प्रयासों पर लोग दृष्टिपात नहीं करते क्योंकि यह संवेदनशील खबर नहीं है।
आज आवश्यकता है छात्रसंघ चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अनुसार सुचारू रूप से परिसरों में करवाये जाये। परीसिरों से निकलने वाली आवाज ललकार बने, तभी देश का भविष्य बनेगा। देश का भविष्य बदलने और बनाने की ताकत इन्हीं परिसरों में है। इसे बचाने के लिए छात्रों का लोकतांत्रिक प्रशिक्षण अनिवार्य है। छात्र कल का नहीं आज का नागरिक है। समझौतापरस्त सार्वजनिक जीवन में आदर्श हस्तक्षेप का प्रतिनिधि है। छात्र हमें उस छात्रा की आवाज को बचाना होगा क्योंकि तभी लोकतंत्रा बचेगा और मजत्रबूत भी होगा। खामोश परिसर देश के लिए खतरे की होती है क्योंकि वे कारपोरेट पुर्जे तो बना सकते हैं पर मनुष्य बनाने के लिए संवाद, विमर्श, और लड़ाईयां जरूरी है। इसलिए हमें नये जमाने के नये हथियारों और नये तरीकों से पिफर से छात्र आन्दोलन की धार को पाना होगा। जिसे गवा बैठने का दुःख हर संवेदनशील छात्र में बेतरह मथ रहा है।

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