पं. दीनदयाल उपाध्याय

एक व्यक्ति मुजफ्रपफरपुर से मोतीहारी जा रहे थे। उसी डिब्बे में जिले के एक उच्च पदाधिकारी भी यात्रा कर रहे थे। डिब्बे में एक लड़का आया और उपाध्याय जी के जूते उठाकर पालिश करने लगा। उपाध्याय जी अखबार पढ़ रहे थे। पालिश करने के बाद वह लड़का उठा अपफसर से पूछने लगा साहब पालिश।
साहब ने पूछा ‘कपड़ा है सापफ करने का’ लड़के ने दीनता से कहा ‘नहीं’। साहब ने कहा तब जाओ लड़का उपाध्याय जी से पैसे लेकर जान लगा चेहरे पर बेबसी की छाया थी। उपाध्याय जी उठे उसे रोकर कहा ‘बच्चे साहब के जूतों पर पालिश करो। पिफर अपने झोले से एक पुराना तौलिया निकाला। उसका एक टुकड़ा पफाड़ा और लड़के को देते हुए कहा तो बच्चे ये कपड़ा ले लो। ठीक से रखना पफेंकना नहीं इसके बिना तुम्हारा अभी नुकसान हो गया था। अधिकारी उपाध्यायजी की ओर देख ही रहे थे कि स्टेशन पर हजारों कार्यकर्ता उस व्यक्ति को लेकर नारे लगाने लगे दीनदयाल उपाध्याय जिन्दाबाद। तो अधिकारी ने कहा आप ही है आल इंडिया लीडर दीनदयाल उपाध्याय।
दीन दयाल जी का पैतृक गांव पंडित हरीराम उपाध्याय  के वंश में उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में, नागला चन्द्रभान ग्राम में हुआ था। दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को राजस्थान के धनकीया ग्राम में हुआ। 3 वर्ष से कम उम्र में उनके पिता भगवती प्रसाद एवं 8 वर्ष से कम उम्र में उनकी मां रामप्यारी देवी का स्वर्गवास हो गया। बाल्यकाल में माता-पता की मृत्यु होने के बाद भी उन्होंने मैट्रिक परीक्षा में सर्वश्रेष्ठ अंक लाने पर सीकर महाराजा ने उन्हें स्वर्णपदक, पुस्तकों के लिए 250 रुपए एवं 10 रुपए प्रतिमाह का विद्यार्थी वेतन व आशीर्वाद दिया। उनकी रेखा गणित की उत्तर पत्रिका कापफी वर्षों तक सहेज कर रखी गई। 1931 में इंटरमीडिएट परीक्षा में सर्वाधिक अंक लाकर स्वर्णपदक प्राप्त किया। अभी तक किसी विद्यार्थी ने इतने अधिक अंक प्राप्त नहीं किये थे। दीनदयाल जी बी.ए. के लिए पिलानी से कानपुर आये। 1937 में जहां उनका परिचय बलवंत महासिंघे एवं सुन्दर सिंह जी भंडारी से हुआ। इन्हीं के प्रयास से वे संघ कार्य में रुचि लेने लगे।
दीनदयाल जी ने राष्ट्रधर्म प्रकाशन नाम से संस्था स्थापित की। अपने विचारों के प्रसार के लिए राष्ट्रधर्म मासिक, पा×चजन्य साप्ताहिक, स्वदेश नामक दैनिक प्रारंभ किये। इन्हें प्रारंभ कर चलाने में सम्पादक, कम्पोजीटर, पत्रिकाओं को ले जाने वाला भारवाहक तथा कार्यालय के चपरासी का भी काम उन्होंने किया।
महात्मा गांधी की हत्या का झूठा आरोप लगाकर शासन ने संघ पर प्रतिबंध लगाया। बढ़ते संघकार्य को देखकर राजनैतिक बदला लेने की दृष्टि से संघ पर प्रतिबंध लगाया। यह कहकर संघ ने देशव्यापी आन्दोलन शुरू किया उस समय दीनदयाल जी उत्तर प्रदेश के प्रांत सहप्रचारक थे।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 21 अक्तूबर 1951 को दिल्ली में भारतीय जनसंघ की स्थापना की। मुखर्जी प्रमाणिक व उत्तम कार्यकर्ताओं के सहयोग हेतु संघ के सरसंघचालक श्री गोलवलकर गुरुजी से मिले।  गुरुजी ने श्री दीनदयाल को जनसंघ के लिए दीया।
1952 में कानपुर में जनसंघ का अखिल भारतीय अधिवेशन हुआ। उसमें श्यामाप्रसाद मुखर्जी दल के अध्यक्ष एवं दीनदयाल उपाध्याय को दल के महामंत्राी के नाते नियुक्त किया। अधिवेशन में मुखर्जी ने गर्व से घोषणा की, इनके जैसे और दो दीनदयाल मिल गये, तो मैं देश के सारे राजकीय मानचित्रा को बदल दूंगा। कश्मीर आन्दोलन का सारा दायित्व दीनदयाल को सौंपा गया। डा. मुखर्जी ने सत्याग्रहियों के साथ कश्मीर में प्रवेश किया। वे पकड़े गये। श्रीनगर के कारागार में सन्देहास्पद स्थिति में उनका स्वर्गवास हुआ। शैशव अवस्था में जनसंघ को बड़ा धक्का पहुंचा। अपरिमित शोकग्रस्त होते हुए भी उन्होंने जनसंघ को सुदृढ़ करने का निश्चय किया। 1953 से 1967 लगभग 15 वर्ष तक दल के महामंत्राी के रूप में काम कर उस कोमल अंकुर को वट वृक्ष के रूप में विकसित किया।
पूर्व एवं पश्चिम के चिंतन का अध्ययन कर खुद एकात्मक मानववाद जैसा समग्र चिन्तन विश्व के सम्मुख प्रस्तुत किया। भारतीय चिन्तन कहता है कि व्यक्ति और समाज न बांटी जा सकने वाली इकाई है। इसको आप बांट नहीं सकते। व्यक्ति और समाज जब बंट जाता है तो मानव मर जाता है, मानव रहता ही नहीं। दीनदयाल जी ने कहा, भारत की मनीषा के अनुसार समग्रता और सम्पूर्णता से देखो तो पाओगे कि मानव में व्यष्टि और समष्टि की एकात्मता है। दीनदयाल जी ने कहा भारत का संदर्भ उससे आगे है, व्यष्टि-समष्टि, सृष्टि और परमेष्टि। इनमें भी एकात्मता है। इसलिए यह एकात्मता का विचार, यदि मानव के सुख का संधान करता है तो इस एकात्मकता के विचार को समझना होगा। इस एकात्मता के विचार को समझते समय हमें ध्यान देना होगा कि हमें केवल व्यक्ति के सुख की साधना नहीं करनी है। यदि हमने समाज को व्यक्तिवादी बनाया तो सुख की लूट मच जायेगी और कोई सुखी नहीं हो पाएगा और यदि हमने समाज के नाम पर व्यक्ति की अस्मिता को नकार दिया तो भारत नौकरों का देश बन जायेगा।
दिसम्बर 1962 में केरल के कालीकट अधिवेशन में पं. दीनदयाल जी जनसंघ के अखिल भारतीय अध्यक्ष बने। 11 पफरवरी 1968 को रात्रि की गाड़ी से दीनदयाल जी लखनऊ जा रहे थे। दूसरे दिन मुगलसराय पर कपड़ों में लेटा शव देखा गया। दीनदयाल जी मात्रा 42 वर्ष जीवित रहे परन्तु उनके जीवन की सुगंध सैकड़ों वर्षों रहने वाली है।   

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