अखण्ड भारत 
मैं पहले आपके सामने वो परिस्थिति संक्षेप में रखना चाहता हूं कि जिससे हम भारत विभाजन की स्थिति में
पहुंचे। उसमें कुछ तो जिसे जियो-पाॅलिटिक्स कहते हैं उसका हाथ था, उसे तो सब जानते हैं, ज्यादातर जानते हैं और कम-से-कम भारत की आंतरिक राजनीति में जो कुछ होता रहा, उससे तो सब परिचित हैं। लेकिन भारत विभाजन के लिए केवल भारत में होने वाली घटनाएं ही नहीं बल्कि जिसे आप इंटरनेशनल पाॅलिटिक्स कहते हैं उसका भी एक पक्ष है। तीसरा एक दार्शनिक पक्ष है, सोच का पक्ष है, अंग्रेज ने इस देश में राज करने के लिए जो व्यवस्थाएं पैदा की थीं उसमें उसका इरादा यही रहा कि इतने बड़े देश को एक सुगठित राज्य के रूप में नहीं रहने देना चाहिए।
अंग्रेज के यहां राष्ट्र जैसी कोई कल्पना नहीं थी। यह ‘नेशनल स्टेट’ जो शब्द है, उसमें स्टेट ही डोमीनेंट है, इसमें ‘नेशन’-राष्ट्र-की जो अवधारणा है वह बहुत कम रहती है। उनकी जो राष्ट्र की अवधारणा है वो पूरे तौर पर पाॅलिटिकल है, राजनीतिक है, इसलिए वहां राज्य के ऊपर, सत्ता के ऊपर, राज्य व्यवस्था के ऊपर ही ज्यादा जोर दिया गया है। तो उन्होंने पहले यह कोशिश कि हिन्दुस्तान को एक राष्ट्र या एक देश के रूप में जो चीजें बांधती हैं उनको पहले ढीला किया जाए। उस ढीला करने में महत्वपूर्ण थी, उन्होंने यह कहलाना शुरू किया कि यह हिन्दुस्तान एक देश नहीं है बल्कि यह एक उपमहाद्वीप है-‘इंडिया इज ए सब काॅन्टीनेंट’। आज तो हमें यह कहने में आपत्ति नहीं होती, बड़ी सहजता से लेते हैं, हर एडीटर को देखिए वे लिखते हैं ‘इंडियन सब-काॅन्टीनेंट’। मैं बहुत विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूं कि जितनी जल्दी यह शब्द हिन्दुस्तान की शब्दावली में से निकाल दिया जाए उतनी जल्दी यह अच्छा रहेगा। इस देश में जो यहां हम रहे हैं हमारी एकता के लिए भी और सारे भारत की अखंडता के लिए भी यह जरूरी है। ‘इंडिया इज नोट ए सब-काॅन्टीनेंट’। इंडिया इज ए कंट्री, इट इज ए नेशन। भारत एक देश है, भारत उपमहाद्वीप नहीं है।
अगर यह उपमहाद्वीप है तो इसमें अनेक देश हैं। मैं अमेरिका गया था अभी, वहां मैंने अमेरिकन स्काॅलर्स से पूछा, ‘इज यूनाइटेड स्टेट्स आॅपफ अमेरिका ए सब-काॅन्टीनेंट? अमेरिका इज एक बिग काॅन्टीनेंट’, दे से नो। यू गो टु कनाडा एंड आस्क दैम इज कनाडा ए सब-काॅन्टीनेंट, दे विल से नो। दोनों का ही क्षेत्रापफल हमसे बहुत बड़ा है। आप रूस में जाइए, रूस में तो कई राष्ट्र मिलाकरके उन्होंने अपनी सोवियत संघ की स्थापना की थी। कहते ही अपने को सोवियत संघ हैं। वो भी अपने को सब-काॅन्टीनेंट कहने को तैयार नहीं थे। यू मे काॅल दैम पफैडेरेशन, यू में काॅल दैम ए यूनियन। लेकिन कभी सब-काॅन्टीनेंट नहीं कहा। आप चीन में जाइए, बहुत विविधता है, लेकिन पूछिए ‘इज चायना ए सब-काॅन्टीनेंट?’ कोई नहीं बोलता। यह हिन्दुस्तान ही क्यों साहब सब-काॅन्टीनेंट है? क्या इतना बड़ा है, क्या एशिया के बराबर है? बहुत छोटा सा हिस्सा है उसका। लेकिन हमें बताया जा रहा है और हमारे जितने बु(िजीवी हैं उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया कि ‘इंडिया इज ए सब-काॅन्टीनेंट।’
अगर यह उपमहाद्वीप है तो इसमें अनेक देश होंगे। जब अनेक देश हैं तो उनको एक साथ लाना कोई जरूाी नहीं है। वो अपने एक देश के तौर पर रहें, और पिफर पाकिस्तान अलग बन गया, बंगलादेश अलग बन गया, बाकी जो हिन्दुस्तान बचा है उसके भी दस-बीस टुकड़े और हो सकते हैं, बिकोज इट इज ए सब काॅन्टीनेंट। तो ये जो सब-काॅन्टीनेंट है यह सपरेटिज्म की बुनियाद है। यह सब-काॅन्टीनेंट शब्द का प्रयोग मुस्लिम लीग की पाॅलिटिक्स के समय से ज्यादा शरू हुआ। यह कहलाया गया बार-बार, हमारे लोगों के बिना सोचे-समझे इसे स्वीकार कर लिया। मैं इस पर बाद में आऊंगा कि क्यों उन्होंने इस बात को स्वीकार कर लिया-कहां माइंड सेट में गड़बड़ी है। इसलिए पहली बात तो हमें यह समझनी चाहिए कि हमारी अवधारणा क्या है? सबकुछ होने के बाद भी हमने इसको कभी, सारी विविधता के बाद, सारी... हर प्रकार की डायवर्सिटी के बाद भी हमने कभी यह नहीं माना कि यह एक उपमहाद्वीप है। हमारे पुराने समय से यह कहा गया-
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्ष तद् भारतं नाम भारती यत्रा संततिः।।
समुद्र के उत्तर में हिमालय के दक्षिण में यह पफैला हुआ सारा एक देश है, इसका नाम भारत है तथा इसकी संतति का नाम भारती है। यानी इस देश में एक संतति निवास करती है। एक परिवार निवास करता है। और उसकी डायमेंशंस क्या हैं? तो यह एक परिवार, एक पफैमिली, एक संतान, एक देश, एक मातृभूमि है। यह कल्पना जो हमारी थी उसको पहले तोड़ा गया।
बात वहां से शुरू हुई ‘हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।’ यह किसने गाना गाया था? क्या गाना गाया था? इस गाने में आपने पहले से स्वीकार कर लिया कि ये चार अलग-अलग हैं। ये हिन्दू अलग हैं, मुस्लिम अलग हैं, सिख अलग हैं और ईसाई अलग हैं। आपस में सब भाई-भाई, उनको भाई बनाना है, क्या मतलब है इस बात का? मैं बिशप से मिला, उनसे मैंने पूछा कि भई, आप इस देश में कब से रहते हैं? बोले, हम तो हमेशा से यहीं रहते है। ईसाई कब बने? कोई कहता है कि हम 1200 साल से, कोई कहता 1400 साल से हैं, कोई कहता है आठ सौ साल से हैं। उसके पहले क्या थे? क्या आप बाहर से आए, नहीं पहले आप यहीं तो थे, कुछ कारणवश आपने आध्यात्मिक शांति के लिए एक रास्ता अपना लिया। किन कारणों से गए? कारणों की बहस नहीं, लेकिन आपने रास्ता अपना लिया, लेकिन आप इस परिवार से अलग कैसे हो गए? इस परिवार में एक व्यक्ति प्रोपफेसर है, एक बनिया है और एक वकील है। एक किसान है। तो क्या परिवार में गाना यह बन जाता है कि वकील, किसान, बनिया भाई-भाई। यह तो समझ में बात नहीं आई। यह माइंड सेट किसने किया, कि हिन्दू अलग हैं और मुसलमान अलग हैं।
यह हिन्दू क्या है? इसकी भी डेपिफनेशन बड़ी अजीब-अजीब कर दी गई। गलती यहां से शुरू हुई। लीडरशिप ने जो भी गलतियां कीं, मैं कभी-कभी कहता हूं कि बहुत बड़े लोग जो गलती करते हैं उसका असर भी बहुत दूर तक जाता है। कांग्रेस के बड़े नेताओं ने जब यह गाना गाया, तो उन्होंने अनजाने में हिन्दुस्तान के अंदर लोगों में चार पफांक कर दिए। इसलिए जब चार हिस्से कर दिये, तो चारों अपने हिस्से मांगेंगे। हम चार भाई हैं, ठीक है साथ नहीं रह सकते। अलग भाई हैं, आपने उनको आइडेंटीपफाई कर दिया, उनके सम्प्रदाय के साथ आइडेंटीपफाई कर दिया। किसी को आप उसके बिजनेस के साथ आइडेंटीपफाई कर दें, किसी को आप उसकी क्वालिपिफकेशन के साथ्ज्ञ आइडेंटीपफाई कर दें, ऐसा कहीं होता है? और जब एक घर में रहता है आदमी, एक माता-पिता की संतान रहता है, जहां ऐसे डिविजन नहीं रहते। जब घर में कुछ गड़बड़ होती है तो कहा जाता है, तुम एक ही मां-बाप की संतान हो, एक ही खानदान के हो, क्या कर रहे हो, तुम अपनी बात सोचो कहां झगड़ा कर रहे हो? इकट्ठे रहो, और जब आप पहले से ही कह रहे हैं तुम तो चार अलग हो, तो बहुत अच्छा, वेरी गुड़, हमको तो यह करना ही है। अंग्रेज ने हिन्दुस्तान को ढीला करने के लिए यह सब किया, तब उसका इरादा सन् 1905 या 10 में तोड़ने का नहीं था, तब सिपर्फ ढीला करने का था।
यह किस्सा चलता रहा और उसका नतीजा, बहुत दूर तक आगे आया। लेकिन जब द्वितीय महायु( समाप्त हुआ, और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य बदल गया, तब उस समय पश्चिमी डेमोक्रेटिक वल्र्ड, उसको रूस का खतरा अनुभव होने लगा। उन्होंने देखा था कि एक बड़ी ताकत है और इसका सिस्टम हमसे अलग है, यह कम्युनिज्म को मानता है और एक चैलेंज है, हमारी केपिटिलिज्म ओर डेमोक्रेटिक सोसायटी को और क्रिश्चियन सोसायटी को भी। क्योंकि रूस अपने आपको धर्म से विरु( मानताप था। तो वे संगठत हुए इस रूप में कि इसकी घेराबंदी करनी है। इस घेराबंदी में, तुर्की से लेकरके एक अर्धचंद्र बनाना था, उन्हें रूस के चारों तरपफ, इधर से उधर से। तो नाटो संधि बना ली थी उन्होंने, लेकिन इधर से यह बनाना था। इसमें पाकिस्तान और अपफगानिस्तान, जिसको आप आज पाकिस्तान कहते हैं और अपफगानिस्तान कहते हैं, इनकी ज्यादा जरूरत थी। क्योंकि बिना इनके वो बनता नहीं था। हिन्दुस्तान और रूस के बीच में पुरानी दोस्ती थी।
इसलिए तब उनके दिमाग में एक बात ज्यादा गहराई से आई कि हिन्दुस्तान की परिस्थिति में यह मोड़ लाया जाए, कि इस इलाके में एक प्रो-ब्रिटिश, प्रो-वेस्ट या प्रो-अमेरिकन सरकार बनाकर कायम रखी जाए। इसलिए जब उन्होंने कहा कि छण्ॅण्थ्ण्च्ण् इसमें तो यहां तो रेप्रंफडम करना पड़ेगा, क्योंकि असेंबली पर छोड़ दिया, तब यह तो हिन्दुस्तान के साथ रहेगी, अब वो एक अजीब बात हो जाती कि अपफगानिस्तान और हिन्दुस्तान के बीच में, पंजाब और यह बचा रह जाता। इसलिए नहीं, इट हैज टु गो टु पाकिस्तान। यह तो अलग होना ही होना है। बलोचिस्तान अलग होना ही होना है। उसके साथ्ज्ञ उसको अलग करने के लिए जेा कुछ और आगे बात बनी उनका सिंध में बहुत इंटरेस्ट नहीं था उस वक्त, थोड़ा इंटरेस्ट था। लेकिन मेजर इंटरेस्ट नहीं था, कश्मीर में उनका इंटरेस्ट था। कश्मीर में उनका इंटरेस्ट इसलिए था कि जो कश्मीर में बैठत है, वो रूस, चीन, हिन्दुस्तान और जिसको आज पाकिस्तान कहते हैं उसे, सैंटघ्ल एशिया, इस पूरे क्षेत्रा पर पूरी निगाह रख सकता है। जियो-पाॅलिटिकली यह बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी इस पाॅलिटिक्स में सूट करता है। इसलिए कश्मीर को हिन्दुस्तान में नहीं रहने देना। इन बातों को थोड़ा समझ लिया जाए, इंटरनेशनल पाॅलिटिक्स की, तो यह बात समझने में आसानी होगी, कि पाकिस्तान को दूर करना हिन्दुस्तान से यानी देश का विभाजन करना। और इस विभाजन को बनाए रखना, इसके पीछे कौन सी पफोर्सेज काम कर रही है?
यह सिपर्फ मौलवियों का ही खेल नहीं है, वो तो, दे आर पपेट्स। वो तो दूसरे के हाथ में आज खेल रहे हैं, उनको खिलाया जा रहा है, इस पाॅलिटिक्स को मजबूत करने के लिए उनका उपयोग किया जा रहा है। दे आर प्रंफट्स, दे आर यूजिंग दैम, उनका दुरुपयोग कर रहे हैं, अपनी राजनीति को ठीक करने के लिए। इसीलिए आप देखेंगे कि कश्मीर की समस्या हल नहीं हुई है। उसके पहले उन्होंने कहा कि अब चल रहे हैं, चलते-चलते या.... चार सौ-पांच सौ, 540 रियासतों को भी छोड़ जाओ यहां। अब जरा हालत पर गौर कीजिए कि अगर वो 540 रियासतें पैरामाउंट्सी के सि(ांत पर आगे आतीं और अपने आपको आजाद घोषित कर देतीं, कहतीं अब ब्रिटिश तो चले गए, हम तो आजाद हैं, तो क्या हालत हिन्दुस्तान की होती? सरदार पटेल ने उन सबको भारत के अन्दर अपनी सूझ-बूझ, शक्ति-बु(ि सबसे इकट्ठा किया और भारत का एक आज का पाॅलिटिकल मैप दे दिया, वरना आप जरा कल्पना कीजिए कि यहां क्या होता? एक तरपफ हैदराबाद आपके सिर पर बैठा होता, वो एक बड़ी रियासत के तौर पर आजाद हो जाता। कहीं कोई और दूसरी रियासत होती, कहीं कोई और तीसरी रियासत होती, लेकिन उन्होंने देखिए, हर चीज को छोड़ना मंजूर कर लिया। अगर चाहता तो क्या हैदराबाद की मदद नहीं कर सकता था? आखिर जिस सि(ांत पर वो टिक सकते थे, उन्होंने कहा कि इसकी जरूरत नहीं है, आगे देख लेंगे। इमिडिएट नेसेसिटी कश्मीर, और इसलिए कश्मीर पर हमला करवाया और इसलिए कश्मीर में हमारी बढ़ती हुई पफौजों को रोका, जब-जब हम कश्मीर में विजय प्राप्त करते हैं तब-तब हमसे समझौते करवाए गए। कश्मीर को सुलझने नहीं दिया गया। इसमें पाकिस्तान कुछ चाहे या न चाहे, लेकिन पाकिस्तान के पीछे जो आज ये अंतरराष्ट्रीय ताकतें खड़ी हो गई हैं, ये सभी कश्मीर को उलझाए रखना चाहती हैं। इसलिए अभी मैं जब अमेरिका गया था, मेरे को उन्होंने पूछा, सी.ए.आई. वालों ने-वाज इज दि सोल्यूशन आॅपफ दि कश्मीर, मैंने कहा, ‘दि की लाइज विद यू।’ आप हट जाइए मैदान से, कह दीजिए कि हम हिन्दुस्तान या पाकिस्तान में या इस साउथ एशिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे। कश्मीर कल हल हो जाएगा।
यह जो एक परिस्थिति है, मैं इसलिए कह रहा हूं कि जिस अखंड भारत के संकल्प को हमें पूरा करना है, उसके रास्ते में जो बड़ी रूकावटें हैं, हिन्दुस्तान या पाकिस्तान की रूकावटों की तो थोड़ी देर बाद में भी चर्चा कर लेंगे, लेकिन ये जो बड़ी रूकावटें हैं, वो इस मामले में कभी भी आपको आसानी से कदम नहीं बढ़ाने देंगी। मैं बार-बार कहता रहा हूं, कि कश्मीर उनके लिए निहायत जरूरी है, जियो-पाॅलिटिकली बहुत जरूरी है। अब आप देखिए, अपफगानिस्तान में प्रो-इंडियन, प्रो-रसियन गवर्नमेंट थी, उलटवा दिया, तालिबान की उन्होंने मदद की, वर्षों ट्रेनिंग दी। पाकिस्तान से ट्रेंड करके लोगों को वहां भेजा। सी.आई.ए. ने पता नहीं कितना-कितना कुछ किया और नतीजा यह है कि सारे क्षेत्रा में एक अस्थिरता आ गई और सारे क्षेत्रा के अंदर ये हालात पैदा कर दिए हैं कि वे कभी स्थिर न हो सकें। इसके लिए एक बहुत सोच-विचार की जरूरत है कि हमें जहां एक अपने अंदर के प्रश्नों को सुलझाना है वहां एक इस अंतरराष्ट्रीय प्रश्न को भी सुलझाना है।
इसमें रास्ते निकालने होंगे, इसलिए मैं सोचता हूं कि पहले इस मानसिकता को बनाया जाए कि हम जिस बुनियादी गलती को कर चुके हैं, उस बुनियादी गलती को दुरुस्त करने के लिए हम यहां कदम उठाएं। इस अंतरराष्ट्रीय उलझन में से कैसे निकलें? अभी तक तो केवल पश्चिमी दुनिया ही शामिल थी, पिछले आठ-दस सालों से चीन भी इसमें शामिल हो गया, क्योंकि चीन को यह खतरा है कि हिन्दुस्तान अगर शक्तिशाली हो जाएगा तो चीन के लिए कठिनाइयां पैदा होंगी। चीन का जो बढ़ता हुआ प्रभाव है, उसको हम ही रोक सकेंगे। उसे मालूम है कि सांस्कृतिक दृष्टि से तथा बु(ि की दृष्टि से या साधनों की दृष्टि से भारत में कोई दिक्कत नहीं है और एक बार भारत अगर बलवान हो गया तो पिफर वो चीन का दबदबा और चीन का रुतबा, उसके लिए बनाए रखना मुश्किल होगा। एक जबरदस्त प्रतिस्पर्धी के तौर पर चीन हमको देखता है। हम भी चीन को उसी रूप में देखते हैं। इसमें शायद कोई गलती नहीं होगी। जो उसके और हमारे परस्पर के विवाद हैं, जो हमारी उत्तरी-पूर्वी सीमा पर बहुत अधिक हैं और कुछ उत्तर प्रदेश की सीमा पर भी हैं। पाकिस्तान का जो हिस्सा है कश्मीर पर उसने कब्जा कर रखा है, उसमें भी है। वह  भी एक नया पफैक्टर इसमें आ गया है, वो भी उसको मजबूती दे रहा है। चीन के प्रतिनिधि लोग यहां आए थे हमसे मिलने के लिए। मैंने उनसे बात की, वो कहने लगे हम भारत से सम्बंध सुधारना चाहते हैं, मैंने कहा आप कैसे सुधार सकते हैं, अगर आप हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में मिलट्री इंबैलैंस पैदा करेंगे, तो कैसे सुधार सकते हैं? आप उसे मिसाइल्स देते जाएंगे तो हमारे यहां आवाज उठेगी कि इस मिसाइल्स का जवाब दो, अगर आप उसे न्यूक्लियर पाॅवर से मजबूत करेंगे तो हमारे यहां भी आवाज उठेगी कि हमें न्यूक्लियर बम बनाना चाहिए। कैसे रोक सकते हैं आप हमें, क्यों न बनाएं हम पिफर? इसका उनके पास कोई जवाब नहीं था। हालत ये पैदा की जा रही है कि ये पाकिस्तान, कम-से-कम पश्चिमी पाकिस्तान यह बराबर बना रहे, मजबूत रहे और हिन्दुस्तान को कमजोर करने के लिए एक अड्डा चीन और वेस्टर्न पाॅवर्स के पास मजबूती के साथ वहां रहे।
धीरे-धीरे इनका ध्यान अब बंगलादेश की तरपफ भी जा रहा है। पहले तो कोशिशें ये की गई कि बंगलादेश किसी-न-किसी तरह से पूरे तौर वेस्टर्न ब्लाॅक में चला जाए, मगर ज्योग्रापफी ऐसी है कि वो उस पर सीधा प्रभाव नहीं डाल सकते। आर्थिक प्रभाव बहुत डाल रखा है उन्होंने वहां पर, चीन और पश्चिमी ताकतें बंगलादेश को हमेशा भारत के खिलापफ रखने की कोशिश करती हैं। कभी सरकार बड़ी मुश्किल से ऐसी आती है जो होस्टाइल नहीं होती हमारे लिए। हमारे लिए विरोधी भावनाएं नहीं रखतीं। ज्यादातर सरकारें वहां ऐसी ही आईं।
इन दोनों इलाकों कोऋ उसमें सबसे बड़ा मुद्दा क्या हो सकता है? उसमें सबसे बड़ा मुद्दा हो सकता है कि आप किस आधार पर अलग हुए थे, इस आधार पर अलग हुए थे कि हमारा मजहब अलग है, हम उस मजहब के हिसाब से अपनी जिंदगी बिताना चाहते हैं, लिहाजा एक मजहबी हुकूमत हमें चाहिए। एक थियोक्रेटिक स्टेट हमें चाहिए। इस्लामिक कंट्री चाहिए। यह तो मांइड सेट किया जा रहा है, इससे तो एक और नया पफैक्टर पैदा हो गया है। कहते हैं कि भई हम तो इसलिए हुकूमत चाहते हैं, रूस अकोर्डिंग शरीयत चाहते है। अब चाहते हैं नहीं चाहते हैं, उसको ला सकते हैं नहीं ला सकते है, उसके अािकार तो मौलाना साहब यहाँ बैठे हैं, बताएँगे कि वह क्या होता है और क्या नहीं होता है। नतीजा यह है कि अभी दो हफ्रते पहले मेरे पास डोक्यूमेंट आया, पाकिस्तान की पफौज का, जब यह सिलसिला शुरू हुआ कि भारत और पाकिस्तान के बीच में सेक्रेटरी लेवल काॅन्Úेंस होनी चाहिए, आपस में बातचीत होनी चाहिए, तो वहांँ पफौज बहुत मजबूत है और सारी राजनीति का अभी तक संचालन तो पफौज ही करती रही है। तो उस पफौज के लोगों ने कहा कि इस बातचीत का मतलब क्या है? होने दो ‘बातचीत, होता क्या है इससे! देखिए’ असली बात यह है कि हम और कि हम और हिंदू इक्ट्ठे रह ही नहीं सकते। वे कहते हैं हम नहीं रह सकते, क्यों नहीं रह सकते? कहते हैं कि हम जिस मजहब को मानते हैंऋ इसको भी मौलाना साहब सापफ करेंगे, बताएँगे हमें कि यह बात वो सही कह रहे हैं या गलत कह रहे हैंऋ लेकिन वो कहते हैं कि साब, हमारा जो रिलीजियस सेक्सन है वो तो हमें इस सकझौते की इजाजत ही नहीं देता। वी हैव टु डेस्ट्रोय दैम, हमें तो उनको नष्ट करना है। व्हाट इज दिस टाॅक? हम इक्ट्ठे नहीं रह सकते, हम तो एडजस्ट नहीं कर सकते, अब पाकिस्तान की पफौज जो डोमिनेंट है, जो अमेरिका के कब्जे में शायद वह सबसे ज्यादा है, जो उसके इरादों को सबसे ज्यादा रिपफलेक्ट करती है या चलाती है। उसके अंदर यह भावना है कि हमें तो हिंदुस्तान को डेस्ट्रोय करना है। हमें तो हिंदुस्तान को नष्ट करना है।
हालत यह है कि नेपाल को हमारे विरु( किया जा रहा है। तो ये जो अंतरराष्ट्रीय बड़ा भारी षड्यंत्रा है, या उनकी प्रवृकतयाँ है... इस देश को एक होने का सवाल तो दूर है पहले तो इसी को तोड़ो, यदि इससे बच जाए तब तो आप पिफर-यह एक ऐसी परिस्थिति है कि जिसको समझे बगैर हमें इस बारे में कोई व्यावहारिक कदम उठाना मुश्किल होगा। डाॅ लोहिया ने और पं. दीनदयालजी ने बहुत पहले सन् 1963 या सन् 64’ में बयान दिया, मुझे मालूम है चूँकि उस बयान को निकलवाने में संदेशवाहक का काम मैंने भी किया था, क्योंकि पंडितजी और डाॅ. लोहिया के बीच में जो संबंध स्थापित हुए थे वो इलाहाबाद की कुछ घटनाओं से हुए थे, इसलिए मुझे  उसकी कुछ मालूमात हैं और उनके बीच में होने वाले पत्राचार का आदान-प्रदान कुछ दिनों तक मैंने भी किया था। अब वो बात भी सन् ‘64 की 32-33 साल पुरानी, तब से तो आपकी अंतरराष्ट्रीय स्थितियों में बहुत बदलाव आ गया। मगर भारत के आम नागरिक में, आम व्यक्ति में ये भावना आज है और शायद पाकिस्तान के भी आम व्यक्तियों में यह भावना कापफी बड़ी मात्रा में है। अभी जो वहाँ से मैं इंडिया टुडे का सर्वेक्षण देख रहा था, तो उसमें 70 प्रतिशत के करीब लोगों ने यह कहा कि वो भारत के साथ अच्छे मैत्राीपूर्ण संबंध चाहते हैं। यह एक शुभ लक्षण है।
ये लक्षण तो हैं, लेनिक आज इस तीस-चैंतीस साल में राजनीतिक परिदृश्य और सरकारों की अपनी मजबूरी, कंपलशंस, लिमिटेशंस दूसरी दिशा में बहुत दूर तक चले गए हैं। मैं जब पार्टी का अध्यक्ष था, तब जो अध्यक्षीय भाषण था उसमें संकल्पना रखी थी, लेकिन देश ने भी ओर बाकी लोगों ने भी नोटिस नहीं लिया। मैंने तो कहा था सिपर्फ जिसको आप भारतीय क्षेत्रा कहते हैं, भारत खंड कहते हैं उतना ही क्यों, हमारी जो एकता है, जो जीवन-मूल्यों की एकता है वह कापफी बड़े क्षेत्रा में प्रदर्शित हुई है। वो कम-से-कम अपफगानिस्तान से इंडोनेशिया तक पफैली है, इसलिए मैंने कहा कि बामियान से बोरोबुद्दर तक एक महासंघ की स्थापना की जा सकती है। ये अपफगानिस्तान से लेकर इंडोनेशिया तक ऐसा क्षेत्रा है कि अगर आप इसको ठीक ढंग से देखें, इसके सांस्कृतिक जीवन-मूल्य एक-से हैं। उमसें विभिन्न प्रकार की उपासना प(तियां हो सकती हें। उसके विभिन्न-विभिन्न शेड्स हैं, उसके अंदर कापफी अलग-अलग तरह के रंग हैं। इंडोनेशिया में जो इस्लाम का स्वरूप है वो पाकिस्तान में नहीं है। कश्मीर में जिस ढंग का इस्लमा है वो पंजाब में नहं है। ये शेड्स हैं, पफर्क हैं। लेकिन इस सबके बावजूद भी अगर आप जीवन-मूल्य देखेंगे, जीवन दृष्टि देखेंगे तो उसमें बहुत समानता है। आज उसमें अंतर डालने की कोशिश की जा रही है। उन अंतरों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
आप थाइलैंड जाइए, थोड़ा सा वहां बैठिए, आप भाषा उनकी समझना शुरू कर दें, आचरण देखना शुरू कर दें, तो पता लगेगा कि ये तो बहुत हद तक वैसा ही करते हैं जैसा हम करते हैं। इंडोनेशिया जाइए तो ओम स्वस्ती कहता है, नमस्कार! नाम उनके आप देखिए, अगर ये न बताया जाए कि वो इस्लाम धर्म के मानने वाले हैं तो सुकर्ण नाम से आपको क्या पता चलेगा, शास्त्रा अमित जय नाम से क्या पता लगेगा, अली लगा हुआ है उसमें तो पता लग गया। अली शास्त्रा, अमित जय वो कहां की भाषा में अलि शास्त्रा अमित जय, हो जाते हैं, अली छोड़ दीजिए तो शास्त्रा, अमित, जय सुनने के बाद आपको यह नहीं लगेगा कि आप कहीं दूसरे आदमी से बात कर रहे हैं। ओम स्वस्ती कहें तो आप समझेंगे कि कोई अपना ही बंदा है। खान, पान, भोजन, रीति-नीति, व्यवहार-इसमें इतनी समानताप है इस क्षेत्रा में कि आप सामान्य तौर पर इकट्ठे हो सकते थे, इकट्ठे हो सकते हैं। लेकिन जितनी देर लगाएंगे, उतना ही काम थोड़ा और कठिन होगा। इसलिए आप केवल छोटे स्तर पर ही न सोचें, जरा बड़े स्तर पर सोचें। ये क्षेत्रा है इतना बड़ा, इसके जीवन-मूल्यों का मैं हिन्दू हिन्दू जीवनमूल्य कहता हूं। ये इसलिए कहता हूं कि हिन्दू शब्द के साथ आज एक ये भ्रांति पफैला दी गई है कि यह एक सम्प्रदाय है, एक मजहब है, यह पूजा की प(ति है। यह गलत है। हिन्दू यह एक संस्कृति है।
यह संस्कृति इसलिए नहीं है कि ये हिन्दू नामधारी किसी सम्प्रदायवाले की है। क्योंकि यह शब्द तो हमें, ये नाम जो इस देश के लिए दिया गया है, वह नाम तो पफारसी भाषा-भाषी लोगों के द्वारा, जब वो हमारे देश के उत्तर-पश्चिमी भाग के सम्पर्क में आए तो सिंध नदी उनके रास्ते में पड़ी, इस सिंधु को ‘स’ वो बोल नहीं सकते थे, पफारसी में वो ‘ह’ हो जाता है भाषाशास्त्रा के लोग इसको जानते हैं। हम सप्ताह बोलते हैं, वे हप्ता बोलते हैं। हम संस्कृत में ‘मास’ बोलते हैं, वे पफारसी में ‘माह’ बोलते हैं महीने को। हम जिस नदी को सिंधु कहते हैं उसको वो हिन्दू देश कहते हैं। पहाड़ का नाम हिन्दूकुश हैऋ वहां कोई हिन्दू रहता था या नहीं यह तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन सिंधु नदी के पास का पहाड़ है हिन्दुकुश ;सिंधुकुशद्ध, हमारे देश की पहचानऋ जो उधर से आए, और जो अरब से आए और समुद्र मार्ग से आए उनको भी सिंधु नदी का मुहाना मिला, इसलिए इस देश की पहचान इस नदी के कारण हुई, यह हमारा एक लैंडमार्क था। पूछते थे कि भई कहां जा रहे हो, तो सिंधु नदी के देश जा रहे हैं, सिंधु बोलना मुश्किल होता था, हिन्दू देश में जा रहे हैं। इस नदी के इस तरपफ जो भी रहता है, वह भगवान् को मानता हो, नहीं मानता हो, एक देववाद मानता हो, बहुदेववाद मानता हो, ईश्वरवादी हो, निरीश्वरवादी हो, प्रकृतिवादी हो उनके लिए यह देश एक इकाई है।
आज भी अरब में जो लोग जाते हैं, उनके लिए कहते हैं ये हिंदी आ गया। मात्रा का ही झगड़ा है न! कई बार लोग कहते हैं, अपने को हिन्दी कहो। हिन्दू क्यों कहते हो? मैं कहता हूं मात्रा का क्या झगड़ा करते हो, चलो हिन्दी कह लेते हैं। बड़ी ‘ई’ और ‘ऊ’ की मात्रा का ही तो पफर्क है, मात्रा पे झगड़ा कर रहे हैं, चलो, कुछ भी कह लो। लेकिन ये जो एक देश है, इस देश की पहचान इसलिए नहीं थी कि वो यहां रहने वालों का कोई धर्म था, मजहब था, जिसे हिन्दू कहा जाता था बल्कि इस देश की पहचान भौगोलिक महत्वपूर्ण नदी के कारण थी, जो बड़ी नदी थी, जिसको पार करना उनके लिए थोड़ा सा वैसे ही संकट का मामला पड़ता था। जब ये सिंधु नाम हिन्दू में बदला तो पफारसी में और अरेबिक देशों तक हिन्दू गया। जो दिक्कत पफारसीवालों के लिए थी वही दिक्कत ग्रीक भाषा वालों के लिए आई। जब यूनानियों के सम्पर्क में आए, उनके यहां उच्चारण में यह भेद है कि अगर किसी कठोर शब्द के आगे स्वर हो जो कठोर शब्द वे बोल नहीं सकते। हिन्दू ;भ्पदकनद्ध में एच नहीं बोल सकते, इसलिए वो ‘इंडू’ हो गया। इंडिया हो गया। जब लोग कहते हैं कि ‘आई एम एन इंडियन’, मैं कहता हूं आप अंग्रेजी में हिन्दू हैं और क्या पफर्क है। कोई पफर्क नहीं है।
लेकिन बुनियादी गलती यह है, जिसे हमने भी स्वीकार कर लिया, हिन्दू हम हैं, वो मुसलमान हैं। वो ईसाई हैं। मौलाना साहब बैठे हैं, बड़े अदब से मैं कहता हूं वे मोहम्मदिया हिन्दू हैं। बहुत बड़े हिन्दू हैं। क्योंकि जीवन देखिए उनका, संतों की तरह से है, उनको देखकर लगता है, किसी )षि के पास बैठे हैं। मैं तो जब भी उनके पास बैठता हूं मुझे बहुत शांति मिलती है, कैसी शांतिपूर्ण मुद्रा है उनकी, किसी )षि से कम है? चूंकि नाम मौलाना वहीदुद्दीन है इसलिए आप इनको )षि वहीदुद्दीन कहने में संकोच करेंगे। क्यों? वे जो संत के गुण हैं वे उनमें विद्यमान हैं। मैं इसको पूरी अपनी जानकारी के आधार पर कह सकता हूं। जो शांति आपको उनके चेहरे पर मिलेगी, उनके पास बैठने पर मिलेगी, उनके घर में मिलेगी वही साधारणतः किसी दूसरे संत के यहां आपको मिलेगी। अगर उसी संत का नाम कुछ अवैद्यनाथ हो या कुछ रामभद्र हो तो आप कहेंगे कि यह अपना संत है और यह पराया संत है। गड़बड़ यहां से शुरू हो गई है। यह जो हमने पफर्क डाल दिया कि ये हिन्दू एक सम्प्रदाय है, हिन्दू एक पूजा प(ति है, हिन्दू उसी तरह से है जैसे ईसाई या मुसलमान, यह बात नहीं है।
कांग्रेस ने या उन तमाम नेताओं ने सबसे बड़ी गलती विभाजन की उस दिन की जिस दिन उन्होंने हिन्दू, मुसलमान, ईसाई को इस रूप में बांटा। अभी सर सैÕयद अहमद साब का जिक्र किया गया थाऋ सीमांत गांधी, अब्दुल गफ्रपफार खां के बेटे वली खान ने पुस्तक लिखी है-‘पैफक्ट्स आर पैफक्टस’ऋ उसमें उन्होंने कहा कि सर सैÕयद अहमद से जब कहा गया गुरुदासपुर में, उनको मुस्लिम लीडर कहा गया, तो उनको बुरा लगा? उन्होंने कहा आप क्या बात करते हैं, मैं भी उसी तरह से हिन्दू हूं जैसे आप, क्योंकि दी वर्ड हिन्दू इंक्लूड्स बोथ हिंदूज एंड मुसलमान। यह राष्ट्रवाचक शब्द है। यह सम्प्रदायवाचक, मजहबवाचक या जातिवाचक शब्द नहीं है। यह अगर सन् 1884 में बात कही जा सकती है तो सन् 1997 में क्यों नहीं? हिन्दू एक सम्प्रदाय नहीं है, हिन्दू एक राष्ट्रवाचक संज्ञा है। यह एक सांस्कृतिक अवधारणा है, क्योंकि भारतीय राष्ट्र यह एक सांस्कृतिक अवधारणा है।
भारत की राष्ट्रीयता राजनीतिक नहीं है। भारत की राष्ट्रीयता सांस्कृति है। एक सेमिनार में मैंने यही बात कही, हमारे एक उस समय विदेशी मंत्राी थे सलमान खुर्शीद, वो कहने लगे साहब, इसका क्या मतलब है? मेंने कहा, इसका मतलब यह है कि मेरी निगाह में आज पाकिस्तान, बंगलादेश और हिन्दुस्तान तीन राज्य हैं, मगर राष्ट्र एक है। इस देश में राज्य अलग हो सकते थे, पहले भी थे, उनमें आपस में संघर्ष भी हो जाते थे, लड़ाई भी हो जाती थी, महाभारत की लड़ाई कुछ विदेशी राजाओं से नहीं थी, आपस में थी। मगध और कलिंग की लड़ाई ये किसी विदेशी से नहीं, आपस में थी। इसलिए इस देश में कोई परस्पर संघर्ष नहीं हुए हैं, राजनीतिक संघर्ष नहीं हुए हैं, यह बात तो नहीं थी। हुए हैं, लेकिन उस वक्त भी जब कलिंग में खारवेल शासन करता था और उस समय भारत पर विदेशी हमला हुआ, उन्होंने कहा देखो अब मौका आ गया है, चाहो तो मगध से बदला लिया जा सकता है, तो उसने कहा मगध की लड़ाई तो हमारी आपसी लड़ाई है, लेकिन उस बाहर वाले से तो हम मिलके लड़ेंगे, इसका हम बदले के लिए साथ नहीं दे सकते। यह जो भावना थी इस देश को एक रखने की, ये पाॅलिटिकल नहीं थी। यह पाॅलिटिकल होती तो खारवेल कहते बहुत अच्छा आज मौका मिल गया, पटको इसको। यह नहीं किया उन्होंने बावजूद इसके कि कलिंग के ऊपर इतना बड़ा आक्रमण अशोक की वजह से हुआ था, लेकिन उसके बाद भी खारवेल ने यह स्वीकार नहीं किया कि वो किसी विदेशी आक्रमण की मदद करें। तो राष्ट्र की कल्पना पाॅलिटिकल नहीं है, यह कलचरल है, सांस्कृतिक है।
हमने इसीलिए कहा है भारत एक देश है, एक जान है ‘वी आर द पिपल आॅपफ सेम स्टाॅक’, भारतीय यत्रा संततिः, भारत के अंदर रहने वाले लोग एक संतान हैं। वह संतान, अगर उसने अपना सम्प्रदाय बदल लिया, पूजा प(ति बदल ली तो वह संतान पद से कैसे च्युत हो जाएगी? मैं अगर अपना सम्प्रदाय बदल लूं तो क्या मेरे बाप का नाम बदल जाएगा, और अगर मेरा बेटा संप्रदाय बदल ले तो क्या मैं उसका बाप नहीं रहूंगा और वह मेरा बेटा नहीं रहेगा? तो संतति अगर है, ‘वी पफाॅरगोट इट’, यह गलती हमारे जिन नेताओं ने की उसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। आज हम पारिवारिक सांस्कृतिक समूह-इस रूप में संतति हैं। ये संतति पाॅलिटिकल संतति नहीं है, इकोनाॅमिक संतति नहीं है, यह सांस्कृतिक संतति है। एक संस्कृति के आकर्षण से, उसकी एक शक्ति से हम बंधे हुए हैं। सारा राष्ट्र बंधा हुआ है। उसी सेमिनार में उन्होंने हमसे पूछा कि साब, इसका मतलब है कि आप पाकिस्तान को भी इंडियन नेशन का अंग मानते हैं? मैंने कहा मैं बिल्कुल मानता हूं। मेरा जो संकल्प है जो हम रोज सवेरे घरों में पढ़ते हैं, अब तो बंद हो गया, लेकिन पहले तो रोज पढ़ा जाता था, उस संकल्प में पढ़ते-पढ़ते हम यह कहा करते हैं-
ब्रह्मणो द्वितीय प्रहरार्दे श्री स्वेत वाराह कल्पे
वैवस्वत मनमंतरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे
कलि प्रथम चरणे जम्मूदीपे भारत खंडे
आर्यावर्तांगर्तत ब्रह्मवर्तैक देशे भारत खंडे
भारत खंडे में आए और उसके बाद कहा कि कलिंदी क्षेत्रा दिल्ली में बैठे हैं, तेा इलाहाबाद में बैठे हैं, तो गंगा क्षेत्रा में या भगीरथी क्षेत्रो कहेंगे। मैंने कहा जब मैं पाकिस्तान में जाऊंगा तो कह दूंगा सिंधु क्षेत्रो, रावी क्षेत्रो। बंगलादेश में जाऊंगा तो कह दूंगा पद्मा क्षेत्रो, ढाकेश्वरी क्षेत्रो, हिंगूलाज क्षेत्रो, वाराही क्षेत्रो। मेरे लिए पाकिस्तान इज डिपफरेंट स्टेट बट नोट ए डिपफरेंट नेशन, यह एक बुनियादी बात है। जिसको समझने की जरूरत है। हम अपनी नेशन स्टेट की कल्पना को, प्राचीन जो इस क्षेत्रा की कल्पना है कि राष्ट्र एक सांस्कृतिक अवधारणा है। ‘इट इज जियो-कलचरल काॅन्सेप्ट’। यह एक भू-सांस्कृतिक अवधारणा है। यह राष्ट्रीयता सांस्कृतिक जीवन-मूल्यों से मिलकर बनी है। इस बात को हमें समझना चाहिए।
इस बात को पश्चिमी जगत्-अब समझ रहा है। उन्होंने अभी तीन-चार-पांच सालों से उनके यहां यह बहस चली है। एक प्रोपफेसर हंटिंगटन थे, उन्होंने लिखा है अब काॅन्पिफलिक्ट आॅपफ सिविलाइजेशंज है। वो कहते हैं कि दुनिया में चार सिविलाइजेशंज हैं-एक आधी है, साढ़े चार हैं। एक क्रिश्चियनिटी सविलाइजेशन है, जिसका कि उत्स बाइबिल है। वो बोले कि अमेरिका, कनाडा, सारा यूरोप और अब तो रूस भी, क्योंकि गोर्बाचैव ने कहा कि हम तो पार्ट हैं यूरोप के। इसलिए पार्ट हैं कि हमारे यहां तो क्रिश्चियनिटी यूरोप से भी पुरानी, ओर्थोडोक्स क्रिश्चियनिटी हमारे यहां पहले आ गई थी। वी आर बाउंड बाइ दि प्रेफटर्नल बाइंड्स क्रिश्चियनिटी। गोर्बाचैव ने रूस के पश्चिमी यूरोप से एक रखने के लिए यह नहीं कहा कि हमारी संस्कृति एक है या हमारा खान-पान एक है या हमारे स्वार्थ एक हैं। बोले, वी आर बाउंड बाई क्रिश्चियनिटी। और अमेरिका कहता है कि भई ये डेमोक्रेसी, ह्यूमन राइट्स और प्रफी मार्केट इकोनाॅमी यह हमारा करेक्टरस्टिक है, हमारा चरित्रा है। हमारा उत्स बाइबिल में है। हमारे पास देखो कितनी धन-सम्पत्ति है, कितने हथियार हैं, कितने परमाणु बम हैं, कितनी टेक्नोलाॅजी है। वी आर ए पार्ट आॅपफ दिस, और अब यहां तक बात चली आई है अभी तो लेटेस्ट इश्यू है उनका, पफाॅरन पाॅलिसी का, उसमें एक प्रोपफेसर अताई का लेख है, वो कहते हैं इन डिपफेंस आॅपफ कलचरल इंपीरियलिज्म, और कह रहे हैं कि अमेरिका की संस्कृति विश्व में सर्वश्रेष्ठ है, यही मानवता को राह दिखाने वाली है। इसलिए अन्य संस्कृतियों को नष्ट कर दो, उन्हें समाप्त कर दो और अमेरिकन संस्कृति को सारे विश्व में स्थापित कर दो। डेंजरस, भयावह।
दूसरी बात वो कहते हैं कि एक इसलामिक ब्लाॅक है सिविलाइजेशन का, जिसका उत्स कुरान है। इसके पास भी बहुत मैन पाॅवर है, बहुत भूमिखंड है, संसाधन है, तेल है, सारी चीजें हैं और यह भी एक शतिशाली समूह है दुनिया का, एक सिविलाइजेशन का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए क्रिश्चियनिटी और इस्लामिक इन सिविलाइजेशन का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए क्रिश्चियनिटी और इस्लामिक इन सिविलाइजेशंस में काॅन्पिफलिक्ट होगा। तीसरा कहते हैं चायनीज हैं, जो आज भले ही माओ या देंगे सियाओ पिंग की बात करते होंगे, वो एक तीसरा सांस्कृतिक समूह है, इससे भी टकराहट होगी। साढ़े तीनवां वो कहते हैं जापान है, जिसके बारे में वो अनिश्चित है कि वो किधर जाएगा। क्योंकि वहां बु(िष्ट, क्रिश्चियनिटी दोनों का एक प्रभाव वहां दिखाई देता है।
कहते हैं कि वो जो चैथा बड़ा है, वह है हिंदू। दे आर नाॅट सैड दैट हिंदूज आर ए रिलिजन। वो कहते हैं कि हिंदू इज ए सिविलाइजेशन। कलचर और सिविलाइजेशन का पफर्क उन्हें मालूम नहीं है। व्हेन दे से सिविलाजेशन इन दैट आर्टिकल, इट मींस कलचर। क्योंकि अंतिम आर्टिकल में वो कहते हैं कि कलचरल इंपीरियलिज्म, सांस्कृतिक-साम्राज्यवाद... वो कहते हैं कि इससे बहुत खतरा है। कहते हैं यह हिंदू तो बहुत कमजोर हैं, इसके पास क्षेत्रापफल भी ज्यादा नहीं है, साधन भी नहीं है। गरीब है। बोले यह बात नहीं है, इसमें पोटेंशियलिटि बहुत है। यह बारूद है, जिस दिन इसमें पलीता लग गया, तो यह बहुत शक्ति के रूप में खड़ी हो जाएगी। ये सबसे पुरानी संस्कृति है। इसके अंदर बड़े भारी एक्सप्लासिव एलीमेंट्स हैं, क्योंकि यह लड़ाई नहीं करती, संघर्ष नहीं करती, यु( नहीं करती और उसके बाद भी बची हुई है। पराक्ष में स्वीकार करते हैं, जब आप पढ़ते हैं तो रीड बिटवीन दी लाइंस, ऐसा खुलके नहीं  बोलते वो। ऐसा क्यो है? क्योंकि ये जो सांस्कृतिक अवधारणाएँ हैं हमारी, वो संप्रदाय या देश के लिए नहीं हैं। इस देश की सांस्कृतिक अवधारणाओं में सबसे अधिक सार्वभौमिकता है, सबसे अधिक यूनिवर्सलिटी है। इसलिए महष्ज्र्ञि अरविंद ने, जो अखंड भारत के सबसे बड़े व्याख्याकार हैं, जिनके आश्रम में आज तक वहाँ ख्ंडित भारत का नक्शा नहीं लगाया, वहाँ अखंड भारत का नक्शा लगा हुआ है। सरकार से उनकी ग्रांट बंद हो गई, उन्होंने कहा टु हेल वि इट, हम तो नक्शा यही लगाएँगे। आज उनका जन्मदिवस भी है। महर्षि अरविंद, उन्होंने इसकी व्याख्या की तो उन्होंने कहा कि भई! यह जो देश है, इस देश की राष्ट्रीयता का नाम है सनातन धर्म! सनातन धर्म यह वो नहीं है, जिसमें आर्यसमाज और सनातनियों के झगड़े होते थे। यानी जो सनातन है, जो यूनिवर्सल है, जो सार्वभौमिक है। जो प्राकृतिक नियम हैं, निसर्ग के जो नियम हैं, जिनके ऊपर मानव समाज चल सकता है। यह किसी सम्प्रदाय के लिए नहीं है। यहां जिसको हम गलती से कभी-कभी हिन्दू विचार कह देते हैं, वह इसलिए नहीं कि वो हिन्दुओं के लिए है, बल्कि इसलिए कि हिन्दू कहलाने वाले लोगों के द्वारा उसका आविष्कार हुआ है। हम बहुत सी बार कह देते हैं हिन्दू मथैमेटिक्स, व्हाट इज हिन्दू इन दी मैथेमेटिक्स? नहीं, इट्स नाॅट पफोर हिन्दूज, टि इज डिस्कवर्ड बाई हिन्दूज। कभी-कभी जैसे गुजराल डोक्ट्रीन कह देते हैं, गुजराल ने उसका आविष्कार किया, इसका मतलब यह थोड़े ही है कि वो सिपर्फ गुजराल के लिए है। लेकिन हमें बता दिया गया कि हिन्दू मैथेमिटक्स-मैथेमेटिक्स आॅनली पफोर हिन्दूज, उसको मुसलमान नहीं छूएगा।
बुनियादी गड़बड़ है वो ये है। माइंड सेट में गड़बड़ियां हैं। वो यहां हैं और इसलिए इसको दुरुस्त करना भी बहुत जरूरी है। हमको यह समझना पड़ेगा और मैंने उस दिन उस सेमिनार में यह कहा, पफोर भी पाकिस्तान इज ए डिपफरेंट स्टेट बट नाॅट ए डिपफरेंट नेशन। तो वहां हुए बहुत से सरकारी अपफसरों ने बाद में मेरे से आकर कहा वैल, दिस इज वेरी समथिंग न्यू पफोर अस, लेकिन मुझे खुशी हुई जब बाद में एक विदेश सचिव रहे हुए व्यक्ति ने अपने भाषण में यह कहा, कि भारत की विदेशी नीति तब तक सपफल नहीं होगी जब तक कि वो इस बात का अहसास न करे कि उसके सि(ांत हिन्दू विचार से होने चाहिए। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, यदि हम वसुधा को एक कुटुम्ब मानते हैं, तो इसे, अपने पुराने भारत खंड को एक मानने में हमें क्या दिक्कत है। यह तो वैदिक थाॅट है हमारा, ‘समुद्र पर्यांता पृथ्वी एक राट भवेत्’। तो हम उसको एक समूह, एक परिवार, एक राष्ट्र रूप में मानते हैं, तो मुझे तो कोई इसमें मानसिक कठिनाई नहीं।
लेकिन आज कहा जाता है, आप क्या कर रहे हो? जब मैंने ये कहा कि ये सारा एक महासंघ बन जाना चाहिए। कहने लगे मालूम है, इसमें मुसलमान मेजोरिटी में होगा? आज हम किसी से बात करते हैं अखंड भारत की और सिपर्फ इसकी की बात करें तो कहते हैं क्या बात कर रहे हो, देखते नहीं पाकिस्तान, बंगलादेश, हिन्दुस्तान के मुसलमान मिलकर कितने बड़े हो जाएंगे। हो जाएंगे, यह तो जनसंख्या है इसको नहीं रोका जा सकता, जब तक ये भाव रहेंगे वो कितने बड़े हो जाएंगे या ये कितने बड़े हो जाएंगे, तब तक एकता इंपोसिबल, नामुमकिन। उसके लिए यह जरूरी है कि दोनों ओर से पूरे इस भू-खण्ड में पहले हम इस भावना को जगा सकें, हम जगाएं कि हम सांस्कृतिक रूप से एक हैं। रवीन्द्र संगीत सारे बंगलादेश में गाया जाता है, अभी भी कभी-कभी पाकिस्तानी रेडियो मैं सुनता हूं तो उसमें भगवान् कृष्ण के गीत आते हैं, उनके सीरियल आप देखिए, बहुत लोग देखते है, उसमें लगेगा आपको उसमें हिन्दुस्तानियत या हिन्दुत्व ज्यादा है। अच्छी तरह से दिखाई देता है कि कच क्लीनर सीरियल्स पफोर एनी वन आॅपफ अस। कम-से-कम जो पारिवारिक दृश्य उसमें दिखाए जाते हैं या जिस रूप में वो प्रदर्शित करते हैं वो वैसे ही हैं जिनको हम चाहते हैं, जो हमारी अभिलाषा है। जो हमारे सीरियल हैं वो तो शायद पश्चिमी मीडिया से प्रभावित हैं। वो कलचरल इंपीरियलिज्म आॅपफ वेस्ट का शिकार हो गया है। टु दैट एक्सटेंट, जिसको पफंडामेंटलिज्म कहा जाता है उसका भी एक उपयोग है कि वो इस पश्चिमी रोग को रोकने के लिए शायद एंटीबाॅयटिक हो जाता है। अपना गलत असर भी शरीर में छोड़ देता है, जैसे एंटीबाॅयटिक का प्रयोग कर लेते हैं तो शरीर में कुछ विकृतियां हो जाती हैं, वो बात अलग है लेकिन एक महामारी से आप बच जाते हैं।
बुनियादी चीज यह है कि हमें इस तरपफ ध्यान देना चाहिए। इस रूप में चीजों को लेना चाहिए, मैं समझता हूं इस पर गंभीर रीति से प्रयास किए जाएं, और यह प्रयास हमारा केवल एक छोटे समूह तक न रह जाए, बल्कि इसको बड़े व्यापक रूप में किया जाए। अलग-अलग स्थानों पर किया जाए और केवल भारत में ही न किया जाए बल्कि इसको इस तरह के समूहों के सम्बंध, वहां लाहौर के आसपास बन सकें, कराची के आसपास बन सकें, किसी और विश्वविद्यालय के साथ बन सकें, बंगलादेश में ढाका या मेमन सिंह में कहीं बन सकें, तो उसका उपयोग ज्यादा होगा यह इंटरक्शन होना ज्यादा जरूरी है। कोई जरूरी नहीं है कि पांच साल में ही भारत के अंदर एकता की बात हो जाएगी, हो सकता है पचास साल लगें, हो सकता है पांच सौ साल लगें, हो सकता है हजार साल लगें। वो तो कहा करते थे कि हम हजार साल तक लड़ेंगे, मैं कहता हूं हम भी हजार साल तक लड़ेंगे, मगर तोड़ने के लिए नहीं, हम जोड़ने के लिए लड़ेंगे। तो यह लड़ाई तोड़ने और जोड़ने की, यह बराबर चलती रह। आज के दिन महर्षि अरविंद, पं. दीनदयाल उपाध्याय, डाॅ. लोहिया, आचार्य कृपलानी और पुरुषोत्तम दास टंडन को हम याद करें या उसके पहले के भी वो पुरोधा जिन्होंने इस कल्पना को हमारे सामने रखा, इस मातृभूमि का एक अखंड और एक शाश्वत रूप हम दुनिया को दे सकें। क्योंकि मैं मानता हूं कि ीाारत अपने सही रूप में विश्व के लिए कल्याणकारी समाज और कल्याणकारी दर्शन दे सके इसीलिए निसर्ग ने इसे बनाया है। हम उस निसर्ग की योजना को साकार करने में आगे कदम बढ़ाएं ाअैर उसके लिए जो प्रयास आज हो रहे हैं, वो प्रयास और आगे बढ़ें-इन्हीं शब्दों के साथ आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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