छात्रा आन्दोलन




विश्वभर में छात्र-छात्राओं की विशेषतः महाविद्यालय-विश्वविद्यालयों में पढ़ने वालों की एक विशेषता है शिक्षित युवक होने के नाते वे स्वयं विचार कर सकते हैं, इसलिए वे अच्छे आलोचक हैं, अन्याय का विरोध करने की क्षमता रखते है। स्वयं में परिवर्तन ला सकते है। उसकी इन क्षमताओं के कारण विश्व में छात्रा आन्दोलन समय समय पर होते रहे। इन छात्रा आन्दोलनों में छात्राओं की सहभागिता भी रही, क्या है, उसकी उपयोगिता क्या और उसके जीवन में उसका कोई प्रभाव रहा इसके बारे में इस लेख में मेरे अनुभव के साथ रखने का यह प्रयास है। वस्तुतः छात्राओं के बारे में अलग सोच-विचार करने की आवश्यकता ही नहीं छात्र-छात्रा दोनों के समान गुण हैं। युवक-शिक्षित-युवक होने के नाते आज महाविद्यालय-विश्वविद्यालय में छात्रा छात्रों के बराबरी से शिक्षा प्राप्त करती हैं। व्यवसाय-नौकरी भी करती हैं। लेकिन प्रमाण सभी जगह 50-50 प्रतिशत नहीं है। छात्र आन्दोलनों में छात्र संगठनों में भी उनकी सहभागिता है लेकिन बराबरी की नहीं। पर  उनकी उपस्थिति अवश्य है। उनकी उपस्थिति निर्देश करती है कि उसमें यह क्षमताएं हैं। समाज में महिलाओं की स्थिति अलग होने के कारण अलग विचार करने की आवश्यकता है भारत में स्वतंत्र ता आन्दोलन में, सत्याग्रहों ने, क्रांतिकारियों की गतिविधियो में आजाद हिन्द फौज में छात्राओं की अपनी भूमिका रही। उसके बाद में 74 के छात्रा आन्दोलनों में तथा 75-77 के आपात्काल के समय सत्याग्रह में भी छात्राएं सहभागी रहीं। जेलों में रहीं, सामाजिक कारणों से, विवाह 19-20 वर्ष की आयु में होने के कारण लम्बे समय तक कार्यरत रहना सम्भव न होने के कारण संगठनों के वरिष्ठ पदों पर रहना, तथा नेतृत्व में लम्बे समय रहना कठिन रहता है इसलिए शीर्ष नेतृत्व में उनकी अनुपस्थिति दिखती है। पिफर भी सामाजिक परिवर्तन के साथ बदलाव आ रहे हें। अभाविप में छात्रा सहभाग का शुरू से आग्रह रखने के कारण सभी प्रांतों में अभी छात्राओं का सहभाग है, कुछ प्रान्तों में नेतृत्व भी देता है। महिला महाविद्यालयों के प्रश्नों को लेकर सम्पूर्ण आन्दोलन केवल छात्राओं द्वारा चलाने के बिहार जैसे प्रान्तों से भी उदाहरण है। 
राष्ट्रीय आन्दोलनों में कश्मीर का आन्दोलन, गुवाहाटी सत्याग्रह, शैक्षिक आन्दोलन, तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के विषयों के प्रदर्शनों में सहभागी रही इतना ही नहीं ये अग्रणी भी रही। लाठी खायीं और जेलों में भी गईं, रास्ते पर के कार्यक्रम जैसे रास्ता रोको, नुक्कड़ सभा आदि कार्यक्रमों में भी सभी प्रांतों में छात्राएं सहभागी रहती है। 
छात्रा विषय को लेकर छात्राओं ने पुलिस स्टेशन के घेराव किया था चर्चा के लिए पुलिस ने छात्र कार्यकर्ताओं को बुलाया था लेकिन उन्होंनें कहा चर्चा छात्राओं के साथ होगी पुलिस को यह मान्य नहीं था। अंतिमतः उनको छात्राओं से ही चर्चा करनी पड़ी छात्राओं के बारे में समाज में परिवर्तन लाने के लिए ऐसी घटनाओं का अपना प्रभाव है।
छात्राओं की समस्याओं को लेकर जैसे  महाविद्यालय परिसर में बलात्कार की घटना, प्राध्यापकों द्वारा छेड़छाड़ की घटना -देशभर में जगह-जगह पर आवश्यकतानुसार छात्रा-छात्राओं के आंदोलन हुए। 
समाज में रास्ते पर के आन्दोलन के साथ वैचारिक आन्दोलन के विषय समाज की मानसिकता में बदलाव लाने का और छात्राएं सभी प्रकार के संगठनों के कार्य कर सकती है, निर्णय क्षमता रख सकती है इस पर समाज का विश्वास निर्माण करके, भारतीय दृष्टिकोण से महिला का समाज में सम्मान का स्थान निर्माण करने का-विचार प्रभावी करने में विद्यार्थी परिषद् की छात्राओं ने अपनी कृति से अपनी अहम् भूमिका निभाई है।
विद्यार्थी परिषद् से महिला सम्बंधित भारतीय विचार की प्रेरणा लेकर विश्व मंच पर भी अपना दृष्टिकोण रखने का प्रयास कार्यकर्ताओं ने अपने व्यवसायी जीवन में किया है एक कार्यकर्ता को अमेरिका से विशेष थ्मससवूेीपच भी प्राप्त हुई थी।
किसी भी छात्र आन्दोलन से, संगठन से युवक एक आदर्शवाद को लेकर जीवन भर उसी राह चलने की जीवन दृष्टि प्राप्त करता है।
विद्यार्थी परिषद् से जीवन दृष्टि लेकर अनेक छात्रा कार्यकर्ता अपने जीवन में कार्यरत है।
मुम्बई -महाराष्ट्र के पूर्व छात्रा कार्यकर्ताओं ने मिलकर महिला समस्याओं को लेकर भारतीय भूमिका को प्रस्थापित करने के लिए अन्य अनेक महिलाओं को जोड़कर संगठन खड़ा किया।
कर्नाटक में भी स्वतंत्रा रूप से महिलाओं के लिए कार्य करने वाली, महिलाओं के लिए अर्थाजन के लिए विशेष प्रकल्प चलाने वाली पूर्व कार्यकर्ता प्रभावी कार्य कर रही है।
पूर्व छात्रा कार्यकर्ता केवल महिलाओं के लिए ही काम करती है ऐसा नहीं कर्नाटक में ही एक कार्यकर्ता ने ग्रामीण क्षेत्रा बच्चों को लेकर काम शुरू किया ताकि अपाहिज बच्चों का भी विकास हो। सम्मानित जीवन जी सके इसलिए नये तरीके से कार्य खड़ा किया जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया। और वे आज इस क्षेत्रा में अंतरराष्ट्रीय साख अपने संस्कार संस्कृति को इस माध्यम से लोगों तक पहुंचाना है। मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश में भी कुछ कार्यकर्ता अपाहिजों के लिए महिला उद्योग के प्रकल्प चलाती है, 
कुछ छात्रा कार्यकर्ता अपना पूरा जीवन  ही पति के साथ जनजाति क्षेत्रा में ग्रामीण विकास के कार्य कर रहीं है।
ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते है लेकिन इन उदाहरण देने का कारण यह है कि इन सभी को छात्र संगठन में रहने से यह प्रेरणा मिली है। ऐसे कई कार्यकर्ता अपने अपने क्षेत्रा में नौकरी, व्यवसाय में भी इसी मनोभाव से, दृष्टि लेकर अपना प्रभाव क्षेत्रा निर्माण करते हैं।
समाज में किसी भी विचार/दर्शन का प्रभाव छात्रा जीवन में सबसे अधिक होता हैं। छात्रा आन्दोलन की प्रासंगिकता इसलिए हमेशा ही रहेगी। शायद उसका दृश्य स्वरूप काम करने के शैली में अंतर आ सकता है। उनके आग्रह के मुद्दे बदल सकते हैं, लेकिन छात्रा आन्दोलन का अपना स्थान रहेगा ही और छात्रा-छात्रा अपनी भूमिका जो समाज में एक प्रहरी की है निभाते ही रहेंगे ऐसा विश्वास है। और छात्र आन्दोलन से उभरा हुआ नेतृत्व  जीवन में अन्याय का विरोध करना, तथा आपत्तियों में सक्रिय होना यह उसका स्वभाव है। हर क्षेत्रा में आगे जाकर नेतृत्व देगा। जब तक समाज में अन्याय है, दुःख है, नैसर्गिक, मानवनिर्मित आपत्तियां है, तब तक छात्र आन्दोलन की प्रासंगिकता रहेगी ही। 


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