एक उद्देश्य, एक नारा, एक नेतृत्व





परिवर्तन हमेशा भूख और अभाव से नहीं होता। लोग भूखों रह जाते हैं, अभाव भी सहन कर जाते हैं। सभी लड़ने या मरने नहीं जाते। आन्दोलन तब होते जब लोगों को जीवन के लिए एक उद्देश्य, एक नारा, एक नेतृत्व मिल जाता है। जिसके लिए वे लड़ सकें। आंदोलन खड़ा करता है, वर्तमान व्यवस्था से असंतुष्टि और अपने जीवन को बलिदान कर देने वाला वह आदर्श जो व्यवस्था को ठीक कर देने का स्वप्न दिखाता है। 
यदि विद्यार्थी आंदोलन की बात करें तो विद्यार्थी परिषद ने इसमें एक बड़ा बदलाव लाया, जब उसने ‘आज का विद्यार्थी कल का नागरिक’ जैसे सूत्रा वाक्यों से इंकार किया। परिषद का मानना है कि ‘आज का विद्यार्थी आज का नागरिक’ है। 
जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की चर्चा अक्सर होती है। उनके नेतृत्व में व्यवस्था से असंतोष के साथ संपूर्ण क्रांति का नारा हुआ। जब जेपी जैसा विश्वनीय नेता खड़ा हुआ तो आंदोलन की तीनों शर्तें पूरी हुई। 
पहली नौजवानों में व्यवस्था से असंतोष, दूसरा संपूर्ण क्रांति का बड़ा स्वप्न और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण जेपी का विश्वनीय नेतृत्व। जब तीनों शर्तें पूरी हुई तो आंदोलन अपने चरम तक पहुंचा और परिवर्तनकारी साबित हुआ। मुझे याद है, 74 में दिल्ली विश्वविद्यालय में एबीवीपी ;अरुण जेटली, विजय बिन्दल, हेमंत विश्नोई और पूर्णिमा सेठी का पूरा पैनल जीता था। उस वक्त वह पैनल एबीवीपी के नाम से ही प्रसि( था। इस चुनाव की खास बात यह थी कि इस बार डूसू का चुनाव कैम्पस की अव्यवस्था के लिए नहीं लड़ा गया, बल्कि देश को बदलने के लिए था। इस चुनाव में अरुण जेटली 17,000 वोट के अंतर से जीते थे। चूंकि उस वक्त पूरा देश ही व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई लड़ रहा था। इस आंदोलन में असाधारण प्रतिभा के लोग सामने आए, जैसे आजादी के छात्र आंदोलन में थे। जहां जितनी जरुरत, वहां उतने ही क्षमतावान नेता। उदाहरण के तौर पर रामबहादुर राय, गोविन्दाचार्य, रविशंकर, सुशील मोदी, वेंकैया नायडू। 
यह आंदोलन बढ़ा जयप्रकाशजी की वजह से और चरम पर पहंुचा आपातकाल के समय। इसी दौरान गुजरात में ‘नवनिर्माण’ के नाम से छात्रों का एक और आंदोलन चल रहा था। इस आंदोलन में राजनीतिक दलांे के नेताओं का प्रवेश वर्जित था। मैंने इस दौरान एक छात्रा नेता की हैसियत से पूरे गुजरात का दौरा किया। मेरे किसी जनसभा में दस-बारह हजार से कम की भीड़ नहीं रही। छात्रों की मांग थी, गुजरात के मुख्यमंत्राी चिमनभाई पटेल अपने विधायकों के साथ त्याग-पत्र दें। छात्र आंदोलनकारियों के साथ मोरारजी देसाई भूख हड़ताल पर बैठे और छात्रों का यह आंदोलन सपफल हुआ। सरकार गिर गई। 
12 जून 1975 की तारीख दो अर्थों मंे बेहद महत्वपूर्ण होकर आई। गुजरात में चिमनभाई की सरकार गई।  बाबू भाई पटेल मुख्यमंत्राी बने और इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित हो गया। जून में आपातकाल लगा और चुनाव हुए और सरकार गई। 
देश को पुनः एक स्वप्न और उन स्वप्नों के लिए उनका नेतृत्व करने वाला विश्वसनीय नेतृत्व खोजना है। हमारी तरुणाई में ऐसा नेतृत्व हमारे पास था। हमें विश्वास है कि भारत पुनः अपना मार्ग खोज लेगा और हमारे जीवन में अपने लक्ष्य को हम प्राप्त करेंगे।

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