छात्र आन्दोलन



छात्र आन्दोलन के सामने बहुत चुनौतियां है। विविध पाठ्यक्रम शुरू होने से परिसर का स्वरूप बदला है। इस कारण कैरियरीज्म आया है। तकनीकी शिक्षा व नयी कौशल युक्त विधाओं में काम करने का छात्रों को मौका मिल रहा है। विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ने का मौका मिल रहा हे। नौकरियां भारत में और विदेशों में प्राप्त हो रही है। IT में काम करने का अवसर मिल रहा है।
लेकिन प्राथमिक शिक्षा से Dropout की संख्या अभी भी 60% से कम नहीं हुई है। ग्रामीण क्षेत्रा के विद्यालय पढ़ाने के नाम पर खानापूर्ति करते हैं। इस कारण अशिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है। गरीब व अमीर में अन्तर बढ़ रहा है। देहात से प्रचण्ड प्रमाण में शहरों की ओर पलायन हो रहा है। ऐसी स्थिति में छात्र आन्दोलन नाम की चीज़्ा जो मुख्यतः क्षेत्राीय परिवर्तन व छात्रों के जुड़ाव से सम्ब( है।
1 आज शिक्षा के व्यापारीकरण के दौर में जो पैसा खर्च कर सकते हैं वही शिक्षा प्राप्त कर सकते है। यह छात्र आंदोलन के सम्मुख चुनौती है।
2 दूसरी ओर पर्यावरण देखे तो पानी का स्तर नीचे जाना, ग्लोबल वार्मिंग की दृष्टि से कार्बन इमीशन का प्रमाण बढ़ना, विकसित देशों का विकाशील देशों पर कार्बन इमीशन कम करने का दबाव भी एक चुनौती है।
वही एक ओर विद्यार्थियों का सामाजिक परिवर्तन के लिए भी प्रयास आवश्यक है। सुदुर वनवासी क्षेत्रा में जिस प्रकार का वातावरण बनाया जा रहा है। जिससे हिंसाचार, आतंक बढ़ रहा है, इस कारण जनजीवन, विकास आदि पर जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। यह चुनौती भी विद्यार्थी के सम्मुख है।
खाओ, पिओ और मजा करो वाला भौतिक चितंन विद्यार्थी में बढ़ रहा है। यह एक चुनौती भी विद्यार्थी आन्दोलन के सामने है कि कैसे उन्हें देश व समाज की और उन्मुख करें। उनकी शक्ति का उपयोग देश के समाज के हित में हो यह भी एक चुनौती अभाविप के सम्मुख है।
पूरी तरह से छात्र आन्दोलन खत्म हो गया, यह अर्धसत्य है। राजनीति से छात्र आन्दोलन प्रेरित है यह भी अर्धसत्य है। कोई भी आन्दोलन बाह्य परिस्थिति के संदर्भ में देखा जाता है। जब विद्यार्थी ने महंगाई व भ्रष्टाचार को चुनौती देने का प्रयत्न किया तो उस समय अन्य दलों ने आकर उसका राजनैतिक उपयोग किया। इसलिए अभाविप ने राजनीति से अलिप्त रहते हुए स्वतंत्रा छात्र संगठन के रूप में काम किया। अतः छात्र आन्दोलन राजनीतिक हो गया यह पूर्णसत्य नहीं है।
परंतु विद्यार्थी नागरिक भी है इसलिए अगर वह सामाजिक समस्याओं के प्रश्न राजनीति से पूछता है या राजनीति में सक्रिय होता है तो छात्र संघ चुनाव में भाग लेता है इसमें कुछ गलत भी नहीं है।
यह कहना छात्र आन्दोलन हिंसक है। यह छात्रा आन्दोलन के साथ अन्याय है। कश्मीर आन्दोलन हुआ 10,000 से अधिक छात्र श्रीनगर के लालचैक पर तिरंगा पफहराने गये। देश की सुरक्षा के विषय पर छात्रा ने निर्णायक संर्घष किया। कोई हिंसा नहीं हुई।
शिक्षा के व्यापारीकरण के विरोध में दिल्ली में 2002 में 75,000 छात्रों ले रैली की। जिसमें सब छात्र ट्रेन व बस का किराया देकर आया। कहीं कोई दुर्घटना कोई हिंसा किसी लूटपाट की कोई घटना नहीं हुई।
घुसपैठ के खिलापफ आन्दोलन में 50,000 विद्यार्थियों ने किशनगंज में रैली की। कहीं पर कोई हिंसा नहीं हुई।
आपातकाल के पहले और बाद में तात्कालिक राजनैतिक परिवर्तन के रूप में जो परिणाम हुआ वह हर बार अपेक्षित नहीं है। पूर्वाग्रह के दृष्टिकोण से छात्र आन्दोलन को देखना ज्यादा राजनैतिक है वनिस्बत राजनैतिक आन्दोलन के।
छात्रों के तकनीकी विषयों की ओर मुड़ने से छात्रा आन्दोलन में थोड़ी कमी आई है। काॅलेज का वातावरण परिवर्तित हुआ है। विद्यार्थियों का सामाजिक प्रश्नों के साथ जुड़ना, राष्ट्रीय प्रश्नों के साथ जुड़ना, शिक्षा के व्यापारीकरण व उसके दुष्परिणाम के बारे में जागरूक करना उसे छात्र आन्दोलन कहा जाता है।
इस वर्ष बिहार में ।डन् की शाखा खुलने के खिलापफ विद्यार्थियों का प्रदर्शन हुआ। उन पर लाठीचार्ज होने के बाद बिहार बंद रहा। पर आन्दोलन का प्रभाव होता है। इसलिए छात्रा आन्दोलन समाप्त हो गया ये यथार्थ नहीं हैं। छात्रों की समस्या से सम्ब( विषय उठाने पर छात्रा आज भी एकत्रा आता है।
सोशलसाइट्स/आरकुट/पफेसबुक/ट्वीटर/ब्लाग के माध्यम से छात्रा अपनी बात व समस्या के बारे में समान्य जन व सरकार को सहज तरीके से बता पाते हं। इंटरनेट एक सशक्त माध्यम बना है। Expression of thought  व Collection of knowledge   बना है। इसी क्रम में अभाविपVidhyapatha.com,   इस प्रकार जो नये रास्ते प्राप्त हुए है इनका उपयोग ठीक ढंग से करने की जिम्मेदारी वर्तमान पीढ़ी की है।
छात्रा आन्दोलन का तात्कालिक स्वरूप एक अलग विषय है। उसमें सपफलता, विपफलता, समझौता, चुनाव ये सब विद्यार्थी शक्ति का प्रकटीकरण है। जिससे विद्यार्थियों का नेतृत्व उभरता है।
लेकिन छात्रा आन्दालन से जब सामाजिक दृष्टि, जीवन दृष्टि मिले तब ही छात्र आन्दोलन की सार्थकता है।
जब आज का विद्यार्थी समाज जीवन में जाएगा तो वह समाज को सहयोग करें। विद्यार्थी परिषद् के माध्यम से उसे एक ऐसी दृष्टि मिलनी चाहिए की वह एक आदर्श प्रस्तुत करें। भ्रष्टाचार, व्यापारीकरण, भौतिकवादिता, व्यक्तिवाद सब तरपफ है। यह सब कहना बहुत सरल है केवल उस समय ही उसका प्रभाव नहीं, बल्कि जीवन भर उसका प्रभाव रहना चाहिए।
जितनी चुनौतियां समाज के सम्मुख है उनके समाधान के लिए व्यक्तिगत रूप से या संगठित रूप से प्रयास आवश्यक है। जो राजनीति में जाते है, जाएं परन्तु सामाजिक दृष्टि से जाए, एवं समाज के सर्वांगीण विकास के लिए कुछ योगदान करें।
अ.भा.वि.प. राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लक्ष्य के लिए काम कर रही है। किन्तु राष्ट्र परिवर्तन या राष्ट्र पुनर्निर्माण, व्यक्ति निर्माण से संभव है। व्यक्ति निर्माण या व्यक्ति परिवर्तन सद्गुणों की वृ(ि से हो सकती है। एवं सद्गुणों में वृ(ि प्रेरणा देने से संभव है। यह सब बाते विद्यार्थी परिषद् के माध्यम से हो सकती है। यह प्रेरणा जीवन का अंग बनना चाहिए। उससे देश के लिए विद्यार्थी शक्ति को बड़े परिमाण में लाभ होगा।

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