विजय दिवस

16 दिसंबर, 1971 को भारत ने पाकिस्तान को हराकर इतिहास रचा था। पाकिस्तान के ९३ हजार सैनिकों ने इस युद्ध के बाद घुटने टेके थे।

1971 में बांग्लादेश की आज़ादी को लेकर भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच हुई सीधी जंग में भारतीय जवानों ने बड़ी चतुराई और बहादुरी से दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए थे। इस जंग के कई नायकों में से एक, जेएफआर जैकब उस लम्हे के भी गवाह बने थे जब जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पाकिस्तान सेना के प्रमुख जनरल नियाजी और उनके हजारों फौजियों ने आत्मसमर्पण किया था। विजय दिवस की 39वीं बरसी (१६ दिसंबर) से प‍हले इस जंग में भारतीय सेनाओं की कमान संभालने वाले एक जांबांज की नज़र से भारत की इस ऐतिहासिक जीत को टटोलते हैं।

1969 में सेना प्रमुख सैम हॉरमुसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ ने जेएफआर जैकब को पूर्वी कमान प्रमुख बना दिया था। जैकब ने 1971की लड़ाई में अहम भूमिका निभाते हुए दुश्मनों को रणनीतिक मात दी थी।। जैकब के मुताबिक 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) में युद्ध के बादल मंडरा रहे थे। जंग से आजिज आ चुके और बेहतर ज़िंदगी की तलाश में बांग्लादेश के शरणार्थी लाखों की संख्या में सीमा पार करके देश के पूर्वी हिस्सों में प्रवेश कर रहे थे। पूर्वी पाकिस्तान में लोग इस्लामी कानूनों के लागू होने और उर्दू के बतौर राष्ट्रीय भाषा बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। इसलिए हालात ज़्यादा खतरनाक हो गए थे। पाकिस्तानी फौज को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करने वाले जनरल (रिटायर्ड) जैकब फर्ज रफेल (जेएफआर) जैकब के मुताबिक भारत के तीखे हमलों से परेशान होकर पाकिस्तान सेना ने संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में युद्ध विराम की पेशकश की, जिसे भारतीय सेना ने अपनी चतुराई और पराक्रम से पाकिस्तान के पूर्वी कमान के 93,000 सैनिकों के सरेंडर में बदल दिया।

जैकब के मुताबिक नियाजी के पास ढाका में ही करीब 30हजार सैनिक थे, जबकि हमारे पास ३ हजार। जैकब के मुताबिक उसके पास कई हफ्तों तक लड़ाई लड़ने की क्षमता थी। जैकब के मुताबिक अगर नियाजी ने समर्पण करने की बजाय युद्ध लड़ता तो पोलिश रिजॉल्यूशन जिस पर संयुक्त राष्ट्र में बहस हो रही थी, वह लागू हो जाता और बांग्लादेश की आज़ादी का सपना अधूरा रह जाता। लेकिन वह समर्पण के लिए तैयार हो गया।

मुक्ति वाहिनी को दी मदद

पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश बनाने में सबसे अहम भूमिका मुक्ति वाहिनी की रही। मुक्ति वाहिनी ने बांग्लादेश की आज़ादी के आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। भारत में पूर्वी पाकिस्तान से लगातार आ रहे शरणार्थियों की समस्या से निपटने के लिए भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को मजबूत करने का निर्णय लिया। इस फैसले के तहत मुक्ति वाहिनी को हथियार दिए गए।

युद्ध का औपचारिक ऐलान

3 दिसंबर, 1971को भारत और चीन के बीच जंग का औपचारिक ऐलान कर दिया गया जब पाकिस्तान ने भारत के पश्चिमी छोर पर ११ एयर बेस पर हवाई हमला कर दिया। भारत पश्चिमी और पूर्वी छोर पर पाकिस्तान से जंग में उलझ गया। अमेरिका ने पाकिस्तान को चुनाभारत और अमेरिका के बीच युद्ध की शुरुआत के साथ ही दुनिया की बड़ी ताकतों के बीच बहस गर्म हो गई और खेमेबाजी शुरू हो गई। सोवियत संघ ( अब रूस) और अमेरिका ने अपने-अपने खेमे तय कर लिए। राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की अगुवाई में अमेरिका ने पाकिस्तान का चुनाव किया।

अमेरिका और रूस के कूदने से पहले ही पाक का सरेंडर

इससे पहले कि दो परमाणु ताकत संपन्न राष्ट्र किसी जंग में उलझते पाकिस्तान की पूर्वी विंग ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके साथ ही युद्ध खत्म हो गया और बांग्लादेश का उदय हुआ। हार से तिलमिलाए नियाजी ने कहा, जैकब ने मुझे ब्लैकमेल कियाहार से तिलमिलाए पाकिस्तान ने कुछ हफ्तों बाद चीफ जस्टिस हमीदुर रहमान को युद्ध जांच आयोग का प्रमुख बनाकर हार की वजह का पता लगाने का काम सौंपा गया। कमीशन ने जनरल नियाजी को तलब कर पूछा कि जब ढाका में उनके पास 26,400जवान थे, तब उन्होंने ऐसे शर्मनाक तरीके से क्यों समर्पण किया जबकि वहां पर सिर्फ कुछ हजार ही भारतीय फौज थी। जनरल नियाजी ने जवाब दिया, मुझे ऐसा करने पर मजबूर होना पड़ा।

भारत की रणनीति
जेएफआर जैकब के मुताबिक 1971 की लड़ाई में पश्चिमी मोर्चे पर रक्षात्मक-आक्रामक और पूर्वी मोर्चे पर पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की बेहद आक्रामक रणनीति बनी थी। बारिश रुकने तक बांग्लादेश पर हमला न करने की बात जनरल जैकब ने कही थी। इस बीच, जनरल ने युद्ध की सारी तैयारियां पूरी कर लीं। और जब युद्ध शुरू हुआ तो जनरल जैकब ने खुलना और चटगांव पर हमला बोलने के आदेश को नज़र अंदाज करते हुए ढाका पर फोकस करना उचित समझा। जैकब जब ढाका के पास पहुंचे तो उनके पास3 हजार जवानों की फौज थी, जबकि नियाजी के पास करीब 30 हजार फौजी थे। लेकिन नियाजी जानता था कि बंगाली लोग उसके खिलाफ हैं। नियाजी ने संयुक्त राष्ट्र के नियमों के तहत युद्ध विराम समझौता करने की पेशकश कर दी। 16 दिसंबर को जैकब बिल्कुल निहत्थे हाथों में सिर्फ सरेंडर के काग़ज़ लेकर नियाजी के हेडक्वॉर्टर पहुंच गए। सरेंडर के काग़ज़ जैकब ने खुद ड्राफ्ट किए थे, लेकिन इस पर आलाकमान से मंजूरी नहीं मिली थी। इस बीच राजधानी में मुक्ति वाहिनी और पाकिस्तानी सेना के बीच युद्ध जारी था।

'मैं तुम्हें 3० मिनट देता हूं'

भारत की ओर से पूर्वी कमान का नेतृत्व कर रहे जेएफआर जैकब ने नियाजी से कहा, 'मैं आपको यकीन दिलाता हुं कि आप अगर जनता के बीच आत्मसमर्पण करना चाहते हैं तो हम आपकी और आपके आदमियों की सुरक्षा की गारंटी लेते हैं। भारत सरकार ने इस बारे में वादा किया है और हम आपकी और आपके लोगों की सुरक्षा का भरोसा दिलाते हैं। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो हम आपकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं ले सकते हैं।'

जैकब याद करते हैं, 'नियाजी लगातार बात करता रहा और आखिर में मैंने कहा, 'नियाजी मैं तुम्हें इससे बेहतर डील नहीं दे सकता हूं। मैं तुम्हें 3० मिनट देता हूं। अगर तुम कोई फैसला नहीं कर पाए तो मैं हमले का आदेश दे दूंगा।' बाद में नियाजी के दफ्तर से जैकब लौट आए। नियाजी के पास दोबारा पहुंचे जैकब के शब्दों में, 'मैं नियाजी के पास टहलते हुए पहुंचा। मेज पर सरेंडर के काग़जात रखे हुए थे।' मैंने पूछा, 'जनरल क्या आप इसे मंजूर करते हैं? मैंने नियाजी से तीन बार पूछा। लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया।' इसके बाद पाकिस्तान सेना ने सरेंडर कर दिया।

93000  सैनिकों का सरेंडर
1971की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना भारतीय फौजों के सामने सिर्फ 13 दिन ही टिक सकी। इतिहास की सबसे कम दिनों तक चलने वाली लड़ाइयों में से एक इस लड़ाई के बाद पाकिस्तान के करीब 93हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। आधुनिक सैन्य काल में इस पैमाने पर किसी फौज के आत्मसमर्पण का यह पहला मामला था। 

You can leave a response, or trackback from your own site.

0 Response to "विजय दिवस"

Post a Comment

Powered by Blogger